गांव बना टापु नाव के सहारे, गांव से निकलना हो जाता है मुश्किल
नालंदा, राकेश नालंदा में एक ऐसा गांव है जो बरसात के महीने में टापू बन जाता है। गांव चारों तरफ से पानी से घिर जाता है। कई वर्षों से चली आ रही इस समस्या का समाधान अब तक नहीं हो सका है। मामला बेन प्रखंड के अकौना पंचायत अंतर्गत तोड़ल बीघा गांव का है। जो प्रखंड मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर है। बेन प्रखंड बिहार सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का पैतृक प्रखंड है। और वे इस क्षेत्र से प्रतिनिधित्व भी कर रहें हैं। गांव से सटे होकर सरस्वती नदी बहती जो पैमार नदी से भी मिली हुई है।
देशी जुगाड़ से तैयार की नाव
ग्रामीणों के द्वारा देशी जुगाड़ से नाव तैयार किया गया है। उक्त नाव के सहारे ही ग्रामीण व-मुश्किल गांव से बाहर आ पाते हैं। पानी की धार तेजu रही तो गांव से बाहर निकलना काफी मुश्किल हो जाता है। ग्रामीणों ने तसले का सहारा लेते हुए उन्हें बांस के सहारे बांध कर देशी नाव तैयार किया है। जिसे दोनों छोर पर रस्सियों से बांध दिया गया। गांव के युवक तो किसी तरह से खुद से रस्सी को खींचकर नदी पार कर जाते हैं। लेकिन महिलाएं और बच्चे जब देशी नाव पर सवार होते हैं तो उन्हें दूसरे छोर पर खड़े लोगों के द्वारा खींचना पड़ता है। तब वह गांव से बाहर जा पाते हैं।
60 घरों में 400 से अधिक आबादी
तोड़ल गांव में करीब 60 घर बने हुए हैं जहां 400 से अधिक आबादी रहती है। गांव में पीसीसी ढलाई से बनी सड़क है तो सात निश्चय के तहत पानी की टंकी लगी हुई है जिससे लोगों को नल से जल मिल रहा है। तो वहीं बिजली भी घर-घर पहुंचा हुआ है। लेकिन पुलिया नहीं होने के कारण यह सारी सुविधाएं फीकी पड़ जाती है। खेतों में लगे धान के फसल भी नदी के पानी फैलने की वजह से डूब चुके हैं।
बीमार होंने पर बढ़ जाती है फजीहत
गांव की महिला रूबी देवी ने बताया कि उन्हें काफी तेज बुखार आ गई थी जो जुगाड़ नाव बना है। उस पर सवार होने में डर लगता है। काफी समय से नदी पर पुल नहीं बना है। जिसके कारण जब-जब भी नदी में पानी आता है तब तब गांव के लोग गांव से बाहर जाने को जद्दोजहद करते हैं।
बच्चों की पढ़ाई हो रही बाधित
ग्रामीण विपत यादव बताते हैं कि पूरा खलिहान पानी में डूब चुका है। एक तरफ पैमार नदी तो दूसरी तरफ सरस्वती नदी का पानी खेतों में फैल चुका है। जिसके कारण खड़ी फसल जलमग्न हो गई है। वमुश्किल बच्चे पढ़ाई को लेकर गांव से बाहर निकलते हैं। यह सिलसिला 3 महीनों तक बना रहता है।
डर के बीच दवा देने पहुँची आशाकर्मी
फाइलेरिया की दवा खिलाने पहुंची आशा कर्मी ने बताया कि उन्हें देसी नाव पर बैठने में काफी डर लग रहा था। गांव आने के लिए कोई सुविधा नहीं है। लेकिन फाइलेरिया की दवा खिलाना भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए वे देशी नाव पर सवार होकर नदी को पार कर आई और घर-घर लोगों को फाइलेरिया की दवा खिला रही है।
क्या बोले मुखिया
अकौना पंचायत के मुखिया अभय कुमार सिंह ने बताया कि पुल निर्माण को लेकर प्रपोजल बना हुआ है। लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हुआ है। बरसात बाद काम शुरू होने की उम्मीद है। फिलहाल चचरी पुल बनाने को लेकर प्रस्ताव रखा गया था। लेकिन आपदा मद में पैसे नहीं होने का अंचल कार्यालय से हवाला दिया गया। इसके कारण चचरी पुल बनाने की योजना भी अधर में लटक गई। ग्रामीण अपने स्तर से देशी नाव बनाकर गांव से बाहर आ जा रहे हैं। षष्ठी योजना के तहत मुखिया को भी अधिकार हुआ करता था। अपने स्तर से पंचायत में काम करवाने का, लेकिन नए प्रावधान के अनुसार बिहार सरकार द्वारा मुखिया के पावर को भी ख़त्म कर दिया गया है। जिसके कारण पंचायत स्तर से कुछ भी काम कर पाना संभव नहीं है।
क्या बोले राजगीर एसडीओ
राजगीर एसडीओ कुमार ओमकेश्वर ने बताया कि ग्रामीण पहले अपने स्तर से चचरी पुल का निर्माण कर लेते थे। इस बार भी ग्रामीणों को कहा गया था कि वे चचरी पुल का निर्माण अपने स्तर से करें, प्रशासन उनकी मदद करेगी। चचरी पुल बनाने में करीब डेढ़ से 2 लाख रुपए का खर्च आएगा। यह प्रसाशन कहाँ से लाएगी। ग्रामीणों की सुविधा के लिए नाव का परिचालन शुरू किया जाएगा। गांव का प्रवेश नहर से होकर जाता है। जिसके कारण नदी में पानी आने से यह समस्या होती है।पुल बनाने को लेकर प्रपोजल पास है। जल्द ही निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।